Shri Gurunanak Dev ji ki Sakhi

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श्री गुरु नानक देव जी के बालपन की एक घटना

श्री गुरु नानक देव जी जब छोटे थे तो अपने छोटे छोटे पैरों से चलते हुए किसी अन्य मोहल्ले में पहुँच गये, वहां एक घर के बरामदे में बैठी एक औरत विलाप कर रही थी ।विलाप बहुत बुरी तरह से हो रहा था, गुरु नानक जी के बाल मन पर गहरा असर हुआ, बालक नानक बरामदे में भीतर चले गये तो देखा कि महिला की गोद में एक नवजात शिशु था

बालक नानक ने महिला से बुरी तरह विलाप करने का कारण पूछा तो महिला ने उत्तर दिया , ” मुझे पुत्र हुआ है , मेरा अपना लाल है ये, इसके और अपने दोनों के नसीबों को रो रही हूँ, कहीं और जन्म ले लेता कुछ दिन जिन्दगी जी लेता । पर अब ये मर जायेगा इसीलिए रो रही हूँ कि ये बिना दुनिया देखे ही मर जायेगा”

नानक ने पुछा आपको किसने कहा कि ये मर जायेगा?

महिला ने जवाब दिया इससे पहले जितने हुए, कोई नही बचा

बाल नानक आलती पालती मार कर जमीन पर बैठ गये और बोले , “लाओ इसे मेरी गोद में दे दो”

महिला ने नवजात को नानक की गोद में दे दिया

नानक बोले , ” इसने तो मर जाना है ना ?

महिला ने हाँ में जवाब दिया तो नानक बोले आप इस बालक को मेरे हवाले कर दो, इसे मुझे दे दो महिला ने हामी भर दी |

नानक ने पुछा , “आपने इसका नाम क्या रखा है?

महिला से जवाब मिला , “नाम क्या रखना था, इसने तो मर जाना है इसलिए इसे मरजाना कह कर ही बुलाती हूँ

नानक ने कहा, परंतु अब तो ये मेरा हो गया है ना?

महिला ने हाँ में सिर हिला कर जवाब दिया, आपने इसका नाम रखा मरजाना क्यूंकि अब ये मेरा हो गया है , इसलिये मै इसका नाम रखता हूँ मरदाना ( हिंदी में जिसका मतलब हुआ जो मरता नहीं )

नानक आगे बोले , “अब ये है मेरा, मै इसे आपके हवाले करता हूँ । जब मुझे इसकी जरूरत होगी, मै इसे ले जाऊँगा और यह कहके नानक ने बालक को महिला को वापिस दिया और बाहर निकल गये ।

बालक की मृत्यु नही हुई । छोटा सा शहर था, शहर के सभी मोहल्लों में बात आग की तरह फ़ैल गयी

यही बालक गुरु नानक का परम मित्र तथा शिष्य था । सारी उम्र उसने बाबा नानक की सेवा में ही गुजारी । गुरु नानक के साथ मरदाना का नाम आज तक जुड़ा है तथा जुड़ा रहेगा ।

इसीलिए कहते हैं की मालिक ने जिस पर अपना हाथ रख दिया उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, हमें भी हर वक़्त अपने मालिक से अरदास करनी चाहिए कि हे दाता अस्सीं भुल्लनहार हाँ, बक्श लै – बक्श लै – बक्श लै (हिंदी में – हम गलतियों के पुतले हैं, गलती कर बैठते हैं, हमें माफ़ कर दो)

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