Baba Ji – Satsang Story – Guru Bina gati nahi

Published No Comments on Baba Ji – Satsang Story – Guru Bina gati nahi

सत्संग के दौरान बाबा जी ने एक बहुत ही सुन्दर तरीके से गुरुनानक जी का वृतांत सुनाया जिससे साध संगत के ज्ञान चक्षु खुल गए और गुरु के बिना गति नहींं की महिमा और अच्छे से समझ गए |  

बहुत पहले की बात है एक बहुत अमीर सेठ था। एक दिन सेठ ने अपने पिता के श्राद्ध की वजह से विशाल भण्डारे का आयोजन किया। बहुत सारे  लोगों ने इसमें भोजन किया, संयोग से गुरु नानक देव जी भी वहां पहुंच गए। सेठ जी ने बड़े ही विनम्र भाव से उनका आदर सत्कार किया। नानक साहब ने सेठ से पूछा- सेठ जी| भण्डारे का आयोजन किस ख़ुशी में हो रहा है? सेठ ने जवाब दिया कि आज मेरे पिता का श्राद्ध है इसलिए 200 गरीब आदमियों के भोजन हेतु भण्डारे का आयोजन किया गया है। 

नानक साहब ने उनसे फिर पूछा – क्या आपके पिता जिन्दा है? सेठ जी हंसते हुए कहने लगे- महात्मा जी| आप ये कैसी बात कर रहे हैं? क्या आपको पता नहीं कि किसी का श्राद्ध उसकी मौत के बाद ही किया जाता है।  नानक साहब बोले- परन्तु आपके पिता का इससे क्या सरोकार। यह भोजन जो आपने गरीबों को खिलाया है, यह आपके पिता को तो मिला ही नहींं। वह तो अब भी भूखा बैठा है। सेठ ने आश्चर्य चकित होकर नानक साहब से पूछा- आप यह कैसे कह रहें हैं कि मेरे पिता को भोजन नहींं मिला और वह भूखा हैं। क्या आप जानते हैं कि मेरे पिता कहां हैं? नानक साहब कहने लगे कि आपके  पिता यहां से पचास कोस दूर जंगल में एक झाड़ी में लक्कड़बग्घा बने बैठें हैं। तुमने 200 आदमियों को भोजन कराया ताकि वह भोजन तुम्हारे पिता को मिले परन्तु वह तो कई दिन से भूखें हैं। अगर मेरी बात पर विश्वास नहींं हो रहा तो जंगल में जाकर स्वयं अपनी आंखों से देख लो।

सेठ ने नानक साहब से पूछा- मैं यह कैसे जानूंगा कि वह लक्कड़बग्घा मेरे पिता हैं? नानक साहब ने आशीर्वाद दिया और कहा – जब तुम जंगल में उसके सामने जाओगे तो मेरे आशीर्वाद के प्रताप से वह तुमसे इंसान की भाषा में बात करेगा अपनी जिज्ञासा को मिटाने के लिए सेठ जंगल में चला गया। वहां जाकर उसने देखा एक लक्कड़बग्घा एक झाड़ी में बैठा था। सेठ ने उससे कहा- पिता जी| आप कैसे है? लक्कड़बग्घा ने जवाब दिया-बेटा, मैं कई दिनों से भूखा हूं। मेरे शरीर में बहुत दर्द और तकलीफ है। दर्द मे मारे मैं चलने फिरने में भी असमर्थ हूं।

सेठ ने आश्चर्य  से लक्कड़बग्घे से पूछा- पिता जी| आप तो बहुत नेक इंसान थे। आपकी धार्मिक प्रवृति जग जाहिर थी। आपने बहुत दान-पुन्य किया था फिर भी आपको लक्कड़बग्घे की योनि क्यों प्राप्त हुई? लक्कड़बग्घे ने जवाब दिया कि बेटा, यह सत्य हैं कि मैंने अपनी तमाम उम्र नेक और परोपकार कर्मो में बिताई परन्तु मेरे अन्त समय में मुझे मांस खाने की इच्छा थी जिसके फलस्वरुप मुझे लक्कड़बग्घे का जन्म मिला। इस प्रकार लक्कड़बग्घे से बातचीत करके सेठ जंगल से घर लौट आया और अपने परिवार सहित तुरन्त नानक साहब से मिला नानक साहब से मिलकर सेठ नत्मस्तक होकर उनसे कहने लगा कि आप पूर्ण पुरुष हैं। आपने मेरा भ्रम दूर करके मुझ पर बहुत भारी अहसान किया है अन्यथा मेरे पिता की ही तरह मेरा जीवन भी अकारथ चला जाता। अब आप कृप्या करके हमें वह रास्ता बतायें जिस पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक कर सकें। नानक साहब ने अपार दया करते हुए उन्हें नाम की बख्शीश  दी।

गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान गुरु बिन दान हराम है, देखो वेद पुराण।।

गुरु धारण किए बगैर, अज्ञान वश किया गया दान, हमारे अहंकार को पुष्ट करता है। अहंकार जीव को अधोगति की ओर ले जाता है। वेद शास्त्र इस बात की पुष्टि करते है। राजा नृप एक करोड़ गाय रोजाना दान में देते थे। परन्तु ऋशियों के श्राप से उन्हें अगला जन्म गिरगिट का मिला |  सन्तमत विचार-संत कहते हैं कि दान हमेशा योग्य या सुपात्र को ही करना चाहिए। मनमर्जी से किये गये दान का पता नहींं लगता कि वह सुपात्र को मिला या नहीं। भूल से यदि दान कुपात्र को चला जाता है और वह उससे कोई पाप या बुरा कर्म कर देता है तो कुपात्र से ज्यादा पाप दानी को लगता है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!