बात बहुत पुरानी है, जब ब्यास में ब्यास अस्पताल बन रहा था| ब्यास में ब्यास नदी है इसलिए उस अस्पताल के निर्माण कार्य के लिये रेत नदी किनारे से लायी जाती थी |
उस नदी के पास एक आदमी रहता था जो कि सत्संगियों को पसंद नहीं करता था| जब मजदूर रेत लेने आते तो उनको वहां से भगा देता था की यह मेरी जगह है |इस प्रकार उसने कहीँ से भी रेत नहीं लेने दी, वापिस आकर मजदूरों ने जब “महाराज जी” को ये बात बताई गयी तो उन्होनें बोला कॊई बात नहींँ तुम नदी के दूसरी तरफ़ से रेत ले लिया करो |
कुछ सालों बाद जब ब्यास अस्पताल बन कर तैयार हो गया और सब कुशलता से होने लगा तब एक रोज़ मास्टर जी औऱ अन्य सेवादार ने देखा कि एक आदमी बेंच पर बीमारी की हालत मे बेसुध पड़ा है | उसे अंदर डॉक्टर के पास ले जाकर भर्ती करवाया गया | दो दिन इलाज होने के बाद जब वह ठीक हो गया तो फूट फूट कर रोने लगा |
जब उस से पूछा गया की वह क्यों रो रहा है तो वह बोला जब ये हॉस्पिटल बन रहा था तो मैं ने रेत नहीं लाने दिया था औऱ आज जब मेरे बुरे समय में सब ने साथ छोड़ दिया तो यही मेरे काम आया |
बाद में वो आदमी डेरे आने लगा औऱ सेवा करने लगा |
“मास्टर जी” ने समझाया के अगर कॊई हमारे साथ बुरा करे तो भी हमें अपनी अच्छाई को नहींँ छोड़ना चाहिये|
बहुत सुन्दर “शब्द” जो एक “मंदिर के दरवाज़े” पर लिखे थे:-
1-सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो||
2-लंगर छ्कना है तो, स्वाद मत देखो||
3-सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो||
4-बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो||
5-समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो||
6-रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो||
आपकी सत्संगी बहन और दासी
आरती
राधा स्वामी जी