एक व्यक्ति ने महात्मा से प्रश्र किया। महात्मा जी आत्मा और शरीर के बारे में बताइए महात्मा जी ने उस आदमी को बहुत देर तक समझाया लेकिन उनकी समझ में कुछ नही आया। तो उन्होने एक प्रयोग किया। अपनी झोली में हाथ डाला और उसमे से आम निकालकर उन्होने उस आदमी को दिया। उसे कहा कि इस आम को संभाल कर रखे। व्यक्ति ने उसे संभालकर एक डिब्बे में रख दिया। महात्मा जी ने दस दिन बाद लौटकर उस आदमी से कहा जाओ फल मेरे सामने ले आओ। व्यक्ति ने डिब्बा लाकर महात्मा जी को डिब्बा लाकर दे दिया। महात्मा जी ने जैसे ही डिब्बा खोला और आम को हाथ में लेकर बोले जैसा सुन्दर आम मैंने तुम्हे दिया वैसा ही तुमने मुझे क्यों नही लौटाया। वह आदमी बोला मैंने तो आम को हाथ तक नही लगाया।डिब्बा बंद कर रखा था। किसी का हाथ इस तक नही पहुंचने दिया। लेकिन जहां इंसान का हाथ नही पहुंचता वहा भगवान का हाथ पंहुचता है, ताले इंसान के लिए हैं, भगवान के लिए नही उसका हाथ अंदर गया और उसे बिगाड़ गया। महात्मा जी ने कहा इसका रंग रुप कहां गया?वह बोला महाराज हर एक चीज समय के साथ बिगडऩे लगती है। महात्मा ने कहा क्या गुठली भी खराब हो गई। वह बोला नहीं। अब हम तुम्हें यही तो समझाना चाहते हैं कि आम का छिलका बाहर से गल गया, सड़ गया लेकिन गुठली खराब नहीं हुई। ऐसा ही तुने छिलका धारण किया हुआ है। जिसे शरीर कहते हैं। यह एक दिन सड़ जाएगा, गल जाएगा लेकिन जैसे गुठली का कुछ नहीं बिगड़ता, वैसे ही हमारी आत्मा सदा के लिए होती है। एक आम की गुठली तरह आत्मा फिर से शरीर धारण करेगी।
राधा स्वामी जी
Sharir aur Aatma – Ruhani Vichar 4 July 2017

Radhaswamy 🙏
Radha sawami babaji
Radha sawami