एक बार की बात है, एक सेवादार की ड्यूटी बाबा जी की कोठी में थी, उसके दिल में आया की बाबा जी को रात में देखना चाहिए कि क्या वो भी भजन सिमरन करते हैं. वो रात को बाबा जी के कमरे की खिड़की के पास खड़ा हो गया. बाबा जी रात रात 9:30 तक भोजन और बाकी काम करके अपने कमरे में आ गये. वो सेवादार देखता है कि बाबा जी एक पैर पर खड़े हो कर भजन सिमरन करने लग गये.
वो कितनी देर तक देखता रहा और फिर थक कर खिड़की के बाहर ही सो गया. 3 घंटे बाद जब उसकी आंख खुली तो वो देखता है कि बाबा जी अभी भी एक पैर पर खड़े भजन सिमरन कर रहे हैं, फिर थोड़ी देर बाद बाबा जी भजन सिमरन से उठ कर थोड़ी देर कमरे में ही इधर उधर घूमें और फिर दोनों पैरो पर खड़े होकर भजन सिमरन करने लगे. वो सेवादार देखता रहा और देखते-देखते उसकी आँख लग गई और वो सो गया. जब फिर उसकी आँख खुली तो 4 घंटे बीत चुके थे और अब बाबा जी बैठ कर भजन सिमरन कर रहे थे. थोड़ी देर में सुबह हो गई और गुरु महाराज जी उठ कर तैयार हुए और सुबह की सैर पर चले गये, वो सेवादार भी बाबा जी की पीछे ही चल गया और रास्ते में बाबा जी ने उस से पूछा कि भाई क्या चाहते हो, कल से मेरे पर नज़र रख रहे हो,
वह सेवादार हाथ जोड़ कर बोलता है कि बाबा जी मैं सारी रात आपको खिड़की से देख रहा था कि आप रात में कितना भजन सिमरन करते हो. बाबा जी हस पड़े और बोले:- बेटा देख लिया तुमने फिर?
वो सेवादार बहुत ही शर्मिंदा हुआ और बोला की बाबा जी देख लिया पर मुझे एक बात समझ नहीं आई की आप पहले एक पैर पर खड़े होकर भजन सिमरन करते रहे फिर दोनों पैरो पर और आखिर में बैठ कर जैसे की भजन सिमरन करने को आप बोलते हो, ऐसा क्यूँ?
बाबा जी बोले बेटा एक पैर पर खड़े होकर मुझे उन सत्संगियो के लिए खुद भजन सिमरन करना पड़ता है जिन्होंने नाम दान लिया है मगर बिलकुल भी भजन सिमरन नहीं करते. दोनों पैरो पर खड़े होकर मैं उन सत्संगियो के लिए भजन सिमरन करता हूँ जो भजन सिमरन में तो बैठते हैं मगर पूरा समय नहीं देते. बेटा जिनको नाम दान मिला है, उनका जवाब सतपुरख को मुझे देना पडता है, क्यूंकि मैंने उनकी जिम्मेदारी ली है नाम दान देकर. और आखिर में मैं बैठ कर भजन सिमरन करता हूँ, वो में खुद के लिए करता हूँ, क्यूंकि मेरे गुरु ने मुझे नाम दान दिया था और मैं नहीं चाहता की उनको मेरी जवाबदारी देनी पड़े.
वो सेवादार ये सब सुनकर एक दम सुन्न खड़ा रह गया और उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी
तो मेरे प्यारे सत्संगी और सेवादार भाइयों, अगर हम लोगों को नाम दान मिला है तो पूरा समय देना चाहिए, क्यूंकि हमारे कर्मों का लेखा जोखा हमारे गुरु काल से नाम दान देते समय अपने पास ले लेते हैं, और उनको हम पर विश्वास होता है की हम भजन सिमरन को समय देंगे, इसलिए हमे उनके विश्वास पर पूरा उतरना चाहिए, क्यूंकि हमारी जवाबदारी हमारे सतगुरु को देनी पड़ती है |