बाबा जी ने कहा की “एक दफा सरदार बहादुर जी ने किसी सेवक को बुलाकर कहा की यह तस्वीर सामने उस दीवार पर लगा दे, तो अब क्यूंकि जहाँ तस्वीर लगानी थी वह जगह थोडी ऊंची थी इसलिए वह सेवक कोई मेज़ या स्टूल देखने लगा तो हुजुर ने कहा के मेरे पलंग पर चढ़ के तस्वीर लगा दे, उस सेवक ने कहा के हुजुर इस पलंग पर तो आप सोते हो मैं इस पर पैर कैसे रख सकता हूँ,
फिर हुजुर ने कहा की चल तो फिर उस कुर्सी पे ही चढ़ के लगा दे तो इस बार फिर उस सेवक ने वही जवाब दोहराया की हुजुर उस कुर्सी पे तो आप बैठते हो भला मैं उस पर पाँव कैसे रख सकता हूँ,
फिर वह सेवक बाहर से कोई स्टूल लाया और उस पर चढ़ कर तस्वीर को लगा दिया और बोला की “हुजुर और कोई हुक्म” तो हुजुर ने कहा की बेटा तूने मेरे पलंग और कुर्सी पर तो पाँव नही रखा लेकिन मेरी जुबान पर पाँव जरूर रख दिया”
दरअसल बाबा जी हमें इस साखी के जरिये एक ही बात समझाना चाहते थे की संतों का एक ही हुक्म होता है की भजन सुमिरन करो लेकिन हम उनके हुक्म को तो मानते नही बल्कि अपने मन के अनुसार चल के संतो के हुक्म की और से बेपरवाह हो जाते है |
हमे चाहिए की बाबा जी के हुक्म अनुसार रोज़ रोज़ भजन पर बैठ कर बाबा जी की खुशियाँ हासिल करें.
बाबा जी लगभग हर सत्संग में हमें प्रार्थना कर नी सीखाते है तो आइये हम सब बाबा जी के वचनों को दोहराते हुए कहें की “दात्या भुल्लंहार हाँ बख्श ले बख्श ले”
आपकी सत्संगी बहन और दासी
आरती
राधा स्वामी जी
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी..