Sant Ravidas aur Pipa Ji

Published No Comments on Sant Ravidas aur Pipa Ji

राजा पीपा जी का नाम आप सभी सुना ही होगा, ये एक राजा थे जो बाद में उच्च कोटि के महात्मा बन कर उभरे

राजा पीपा जी को अध्यात्म में गहरी रूचि थी, एक दिन राजा पीपा ने अपने मंत्री से किसी उच्च कोटि के महात्मा का पता करने को कहा तो मंत्री ने बताया कि “अपने ही राज्य में एक महात्मा हैं, अगर आप कहें तो उन्हें दरबार में हाज़िर होने की आज्ञा भिजवा दी जाए?

क्या नाम है उनका?

उनका नाम रविदास है पर “पर वो करते क्या है?”

जी वो चमड़े का काम करते हैं, अपने हाथ से जूते गांठते हैं, लोग बताते हैं हैं कि बहुत ऊंची हस्ती है उनकी

अगर आप आज्ञा दें तो उन्हें दरबार में हाज़िर होने का हुक्म भिजवा दिया जाए?

“नही , किसी महात्मा को हुक्म नही करना चाहिए, उनके पास खुद चल कर जाना चाहिए

राजा पीपा जी रविदास जी के पास जाने की सोचने लग गये पर एक उलझन में फस गये उलझन ये थी कि पीपा खुद एक राजा थे और रविदास जी चमड़े का काम करते थे अब कैसे जाएँ?

सोचते हैं कि लोगों को पता लगेगा तो लोग क्या कहेंगे कि राजा होकर एक जूते गांठने वाले के आगे सिर झुका दिया, बहुत हसीं होगी

अब राजा पीपा जी ने बीच का रास्ता निकाला कि उस समय चलें जब कोई देखने वाला न हो, उन्होंने रविदास जी के पास जाने के लिए सांझ का समय ठीक लगा सो एक दिन सांझ को वे चुपचाप अकेले ही रविदास जी की कुटिया पर पहुंच गये रविदास जी उस वक्त जूते गाँठ रहे थे

पास ही एक बड़े से बर्तन में पानी भरा हुआ था जिसमे चमड़ा भिगो कर रखा हुआ था रविदास जी ने राजा पीपा को आने का कारण पुछा तो पीपा जी जवाब दिया “मुझे सत्य की तलाश है, मैं हर हाल में प्रभु को पाना चाहता हूँ कृपया मुझे अपना शिष्य कबूल करें

रविदास जी ने पीपा जी की तरफ गौर किया तो उन्होंने पाया कि राजा तो सच में ही सत्य का जिज्ञासु था, राजा एक तो न्याय प्रिय था, दयालुता से भरा भरा हुआ था और वह खुद चल कर आया था

रविदास जी सोचने लगे कि राजा है तो दीक्षा के काबिल पर इसके पास इतना समय ही न होगा कि यह भजन बन्दगी कर सके

रविदास जी सोचने लगे कि राजा को सीधा ही सतलोक(सचखंड) में प्रवेश दे दिया जाये रविदास जी ने कहा राजन हमने आपको अपना शिष्य कबूल किया यह लो चरणामृत इतना कहते हुऐ रविदास जी ने बर्तन जिसमे चमड़ा भिगो रखा था में से थोड़ा सा पानी निकाल कर राजा पीपा जी की हथेली पर उंडेल दिया और उसे ग्रहण करने को कहा राजा पीपा जी अपनी हथेली को मुख तक ले गये और रविदास जी से आँख बचा कर अपने कुर्ते की आस्तीन में उंडेल दिया

रविदास जी से.कुछ भी छिपा न था चाहे वे उस वक्त जूते गाँठ रहे थे

राजा पीपा जी घर (अपने महल) आये कुरता उतार कर रानी को दिया रानी ने देखा कि कुर्ते की बाजू की कोहनी वाले स्थान पर दाग लगा हुआ था अगले दिन सुबह धोबी आया और धोने वाले कपड़े लेकर चल.दिया रानी ने उसे दाग दिखाते हुए अच्छी तरह दाग साफ़ करने का निर्देश दिया धोबी ने काफी कौशिश की पर दाग नही छूट रहा था

धोबी की दस बरस की बेटी पास खड़ी सब देख रही थी उसने अपने पिता के हाथ से कुरता लिया और दाग वाली जगह को मुख में ले कर चूसना शुरू कर दिया, बच्ची का मकसद दाग साफ़ करना था पर यह क्या कुछ ही पलों में लड़की बेहोश सी हो गयी

बच्ची को होश में लाया गया होश में आते ही बच्ची ने ज्ञान उपदेश की बातें शुरू कर दीं

बच्ची अंतर के भेद इस प्रकार से खोल रही थी जैसे कोई उच्च कोटि की महात्मा हो

देखते ही देखते भीड़ लग गयी सभी उसकी बातें बहुत गौर से सुनने लग गये

अब यह सिलसिला रोज़ का हो गया, बच्ची को सुनने के लिए लोग दूर दूर से आने लग गये राजा को भी खबर लगी राजा अध्यात्मिक प्रवृत्ति का तो था ही राजा पीपा ने भी बच्ची के दर्शन दीदार की सोची सो एक दिन पीपा जी भी बच्ची का दीदार करने पहुंच गये

बच्ची को राजा ने नमस्कार किया तो बच्ची ने कहा राजन आप मुझे क्यों नमस्कार कर रहे हो मैं आपको नमस्कार करती हूँ क्योंकि जो कुछ मुझे आज मिला आपकी कृपा से ही मिला है

पीपा जी ने पुछा मैंने तो आपको पहले कभी नही देखा, फिर आपको मुझसे कैसे मिल गया?

बच्ची ने सारी बात बताई कि कैसे उसे इतना ज्ञान हुआ

बच्ची ने बताया कि दाग चूसते ही उसका सारा शरीर प्रकाशमय (भीतर से) हो गया था, उसने और भी बहुत कुछ बताया

राजा पीपा समझ गये कि ये सारी कृपा रविदास जी की थी

पीपा जी वहाँ से सीधा रविदास जी की कुटिया पहुंचे और अपने किये की बात बताई कि किस प्रकार से उन्होंने चरणामृत को आस्तीन में उंडेल दिया था पीपा जी ने रविदास जी से क्षमा मांगते हुए दुबारा कृपा करने को कहा रविदास जी ने जवाब में कहा “राजन, हमने तो आपके लिए द्वार खोल दिया था पर आपने खुद ही प्रवेश नही किया आपके स्थान पर वो बच्ची प्रवेश कर गयी राजन अब आपको खुद ही मेहनत करनी होगी आप द्वार खटखटाओ, द्वार खुलेगा

इसी लिए कहते हैं कि अपने भीतर छिपे हुए मान, अपनी बिरादरी के मान का त्याग करना पड़ता है

राजा पीपा जी ने मेहनत की, उनकी भजन बन्दगी को रंग लगा और वे उच्च कोटि के महात्मा बन कर उभरे.

Tomorrow morning – I’d post the Question Answers of Baba Ji’s July 17 USA trip.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!