7-5-2017 (7-मई-2017)
परोर सत्संग – Paror satsang.
बाणी: हुजूर स्वामी जी महाराज
शब्द : धुन सुनकर मन समझाई
बाबा जी ने सतसंग में फरमाया कि इस जीवन की गाडी की स्टीयरिंग उस मालिक के हाथ मे है, जिस प्रकार यदि हमें कहीं जाना हो तो हम बस, ट्रेन आदि में सफर करते हैं तो उस गाडी का स्टीयरिग व्हील ड्राईवर के हाथ में होता है और वह ड्राईवर उस गाडी को अपनी मर्ज़ी से किसी भी दिशा में मोड सकता है क्योंकि स्टीयरिंग उस ड्राईवर के हाथ में है | हम उससे बस अरदास कर सकते है कि गाडी को इधर ले चलो पर हम गाडी को लेकर नहीं जा सकते, वो ड्राईवर ले कर जा सकता है इसी प्रकार दुनिया की स्टीयरिंग उस मालिक के हाथ में है और वो ही इस दुनिया को चला रहा है, हम भी उस मालिक से केवल अरदास ही कर सकते है फिर उसको जो मंजूर होगा वही होगा |
फिर बाबा जी ने समझाया कि हम जब देखो बाबा जी से कुछ न कुछ मांगते रहते हैं, जिसका हमें हिसाब देना पड़ता है, इसलिये यदि उस मालिक से मांगने के लायक कुछ है तो वो है परमार्थ और भक्ति, इसके अलावा कुछ भी हमारे साथ नहीं जायेगा |
हमें उस मालिक के भाणे मे रहना है! तेरा भाणा मीठा लगे !
फिर बाबा जी ने बरतन का उदाहरण दिया कि खाना बनाने के बरतन मे सिर्फ खाना ही बनाये जाओ और उसको साफ न करो तो उस पर मैल की परत चढ़नी शुरू हो जाती है और कुछ दिनों बाद बरतन की चमक गायब हो जाती है लेकिन हम जैसे जैसे उस बरतन को साफ करना शुरू कर दें तो कुछ दिनो बाद उसकी चमक वापस आ जाती है उस दिन हमको पता चलता है कि बरतन क्या था और गंदगी क्या और इसी प्रकार हमारी आत्मा पर करोडों जन्मो की मैल चढ़ी हुई है, जैसे जैसे हम भजन सिमरन करेंगे वैसे वैसे हमारी आत्मा की चमक वापस आनी शुरू हो जायेगी!
फिर उदाहरण दिया कि ऐक ऐसा व्यक्ति जो सारी उमर सिर्फ गाडी चलाने की किताब ही पढता रहा कभी गाडी नहीं चलाई पर दूसरी तरफ ऐक ऐसा व्यक्ति है जिसने सिर्फ गाडी ही चलाई है कोई किताब नही पढी तो आप किस की गाडी में बैठना पसंद करेंगे
इसलिये केवल पढने से या पाठ को सुनने से मुक्ति नही होती जब हम उस जरिया को अमल मे लायेगे भजन बन्दगी में लगेंगे तो उसकी (मालिक)पहचान होगी!
देखो रावण वेदों का टीकाकार था ऐसा नहीं था कि उसके दस सिर थे बल्कि उसमें दस सिरों वाला ज्ञान था इतना ज्ञानी होने के बाद भी क्या वो अपने मन को काबू में कर पाया? क्या मुक्ति हासिल कर पाया? कहने का तात्पर्य यह है कि सारी उम्र केवल पढ़ी मत जाओ, नही तो केवल अहंकार हो सकता है परंतु मुक्ति नही, अमल करनें में मुक्ति है!
फिर बाबा जी ने बुल्ले शाह जी का उदाहरण दिया कि वो जाति से सैयद थे और उनके गुरू शाह इनायत राईं जो नाचने गाने वाले होते है वो थे, जब बुल्ले शाह के घर में बहन की शादी का कायर्कम हुआ तो अपने गुरू को भी शादी में आने की अर्ज की और शादी वाले दिन गुरू शाह इनायत ने खुद ना जाकर अपने ऐक गरीब शिष्य को वहाँ भेज दिया उसके फटे हुये कपडे देख कर बुल्ले शाह ने उसको एक तरफ बैठा दिया और उससे ठीक से बरताव नही किया, वापिस जाकर जब गरीब शिष्य ने सब कुछ अपने गुरू को बताया तो गुरू को बहुत दुख हुआ और उनहोने बुल्ले शाह की तरफ से मुँह मोड लिया और जब किसी प्रेमी का गुरू उसकी तरफ से मुँह मोड ले और उसकी रूहानी तरक्की बंद कर दे तो उसकी हालत एक पागल की तरह हो जाती है फिर बुल्ले शाह ने अपने गुरू को मनाने के लिये कंजरी के कपडे पहन कर अपने गुरू के सामने नाचे फिर शाह इनायत बोले कि तू बुल्ला है ना तब बुल्ले शाह जी ने बोला कि नहीं मैं तो भुल्ला हूं!
और बाबाजी ने आज हुजूर का हाथी के पांव में सबका पांव वाला भी उदाहरण दिया कि केवल नाम के सिमरन और भजन मे ही दुनिया के सारे पूजा पाठ हो जाते है और स्त्री का वह उदाहरण भी दिया कि वो बिंदी को दोनो भौहों के बीच में लगाती हैं और यह सुहागन की निशानी है जब आत्मा परमात्मा से मिलती है तो जन्मो जन्मो से बिछडी हुई आत्मा परमात्मा रूपी पति को पाकर झूम उठती है ! तो हमें भी चाहिये कि हम भी भक्ति कर के अपनी आत्मा का उस परमात्मा की प्राप्ति की पूरी कोशिश करें और यह भी तभी संभव है जब हम करनी का रास्ता अपनायेंगे जब हम उस मालिक कि भक्ति निःस्वार्थ भाव से करेंगे तो वह मालिक हमारी भक्ति की लाज जरूर रखेगा!
राधास्वामी जी..।।