॥ राधा स्वामी जी ॥
यह बडे बाबा जी के समय की बात है। एक जोगी हिमालय पर बैठा बन्दगी किया करता था, एक दिन का वर्णन है कि उस को भजन में हजूर जी ने दर्शन दिए। अपनी सोटी से उठाकर कहने लगे देख जोगी यदि तुम्हें प्रभु से मिलने का रास्ता लेना है मेरे पास ब्यास आ जा। दर्शन पा कर प्रसन्न हो गया, वंदना करते बैठे रहने से उस की टांगे कमजोर हो गई थी चलना कठिन था सोचने लगा कि अब क्या करूँ । लेकिन प्रेम की चोट से रह भी न सका, धीरे-धीरे चलते चलते 6 महीने पश्चात ब्यास पहुंच गया, जब ब्यास आया तो हजूर स्टेज पर विराजमान थे सत्संग कर रहे थे। उसने आते ही स्टेज के पास पहुंच कर माथा टेक कर हजूर जी का हाथ पकड़ लिया, कहने लगा बाबा जी आप मुझे उठा कर लाए हैं, आपके चरण में पध की रेखा भी है।
आपने जब मुझे दर्शन दिए थे तब उस समय रेखा भी दिखाई थी आपने हुक्म दिया था, ब्यास आकर देखकर पहचान लेना। जोगी ने कहा अब आप मुझे दाहिना चरण दिखाये। हजूर ने चरण छुपा लिया, सत्संग में नहीं दिखाया। लेकिन हजूर जी के मकान पर आकर जोगी ने हठ किया। जोर से चरणों पर लिपट कर रेखा ठीक देखी, जोगी कहने लगा – हजूर जी वहां इतनी दूर पहुंच कर तो मुझे सोटी मारकर जगाया और यहां लाये, अब क्यों छुपाते हैं। जोगी ने अर्ज की अब मुझे नाम की दात बख्शे।
हजूर जी ने कहा, देख तू जोगी मैं गृहस्थी हूँ। जोगी ने कहा – नहीं सच्चे बादशाह मेरे तो आप परमेश्वर है। हजूर ने कहा -“यह सब तो खेल तो अकाल पुरुष का है,मै तो कुछ भी नहीं। “धन सतगुरु जी इतनी बड़ी हस्ती होकर भी नम्रता नहीं छोड़ी। हजूर जी ने दयाकर जोगी को नाम बक्शा, अन्दर जाने का पूरा पूरा तरीका समझाया, जोगी एक महीने तक ब्यास डेरे में रहा।फिर हजूर जी ने कहा अच्छा जोगी अब तू एकान्त में जा कर भजन कर। जोगी ने कहा,बहुत अच्छा। हजूर जी ने बहुत प्रेम से जोगी को प्रेम प्रसाद देकर विदा किया। जोगी नाम की दौलत लेकर बहुत प्रसन्न होकर गया। कहने लगा सच्चे पातशाह अब रास्ता ठीक मिल गया, इतने साल भुला रहा।
हजूर ने कहा – देखो जोगी सब कुछ तेरे अन्दर था। अन्दर जाने के रास्ते पर ऊँगली रखी है। समय प्रधान है, तेरा समय आ गया था। हजूर जी समय को मुख्य रखते थे- समय आ गया तो तू आ गया। पहले क्यों न आ गया बस अब तू आगा पीछा न देख, खूब मन लगाकर कर नाम जप साथ जाने वाली चीज नाम या सतगुरु ही है बाकी सब सब यहां की चीज यही रह जानी हैं। जोगी ने कहा – हजूर आप का वचन सत्य है, एेसा ही करूंगा।
राधा स्वामी जी