हजूर महाराज और बड़े हजूर महाराज सावन सिंह जी एक बार कहीं कार से जा रहे थे। तो उन्होंने ड्राईवर को इशारा करके कहा की इस रस्ते चलो ! ड्राईवर उस्सी रस्ते चला पड़ा। बाबा जी को ‘बूट -पोलिश’ करवाना था तो बाबा जी ने कार रुकवाई और ‘बूट -पोलिश’ करवाया जब बाबा जी ने पैसे पूछे, तो उसने कहा की 2 रु, (धुप के कारन उस बूट पोलिश वाले ने सिर नीचे किया हुआ था)। बड़े हजूर महाराज जी ने कहा कि, और लोग तो 5 रु .लेते है आप क्यूँ इतना सस्ता बूट -पोलिश कर रहे हो।
तो उसने कहा की, मेरा मुर्शिद कहता है की , हक -हलाल की कमाई खाओ . मेरा 2 रु, में गुज़ारा हो जाता है।बड़े हजूर महाराज जी बोले : अछा कौन है तुम्हारा वोह मुर्शिद हमे भी बताओ। तो उसने महाराज जी को अपने मुर्शिद की फोटो देखने को दी’ बाबा जी ने देखा तो वो उनकी ही फोटो थी , लेकिन बूट -पोलिश वाला अभी भी सिर नीचे किये हुए था और महाराज जी को नहीं पहचान सका।
यह देखर महाराज जी ने उसे खड़े होने को कहा, और उसकी शबद -सूरत को ऊपर के मंडलों में लेजा कर उसे दर्शन दिए और वह बहुत खुश था, आज उसे वो सब मिल गया था जिसके लिए हम लोग तरस रहे है।
बाबा जी की दया मेहर भी कमाल है :”जिसे दर्शन देना है उसे सात समुन्दर पार भी दे सकते है
जिसके नसीब में नही है उसे सामने बैठे हुए को भी नहीं होते।