Sakhi – Maharaj Charan Singh Ji ki

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एक बार एक सेठ सेवा के जत्थे के साथ डेरे मैं आया | जब वो सेवा कर रहा था तो सत्संग साथ-साथ शब्द बोल रही थी और वो भी बोलने लगा | सत्संग के माहौल मैं उसका दिल लग गया, सोच रहा था कि रुक जाता हूँ, कल सवेरे फिर सेवा कर के घर चला जाऊँगा | रात को जब शेड मैं सोने लगा तो देख रहा है कि बहुत से सेवादार भजन सिमरन कर रहे हैं, सोचने लगा की घर में तो मन लगता नहीं, यहाँ पर माहौल भी है और मौका भी मिला हुआ है, सबके साथ बैठ कर सिमरन करूंगा |
सोचा की मौके का फायदा उठता हूँ और बैठ जाता हूँ | भजन में उसका खूब मन लगा और वो अाधी रात तक सिमरन करता रहा और उसी रात उसके घर पर डाका पड़ गया
अगले दिन उसके घर वालों ने डेरे मैं फ़ोन कर के उसको सूचना दी | अब वो निराश हो गया और थोड़ा गुस्से मैं भी आ गया | बाबा जी तक यह बात पहुँच गई और उसे बुलाया गया तो उसने बाबा जी से गिला जताते हुए कहा कि मैं तो यहाँ सेवा करने आया था और मुझे क्या पता था पीछे मेरा घर ही लुट जायेगा | बाबा जी ने कहा बेटा, चिंता ना करो बहुत कम नुकसान हुआ है | तुम्हारा तो सब कुछ लूट जाना था | यह तो तुम्हे उस सेवा और सिमरन ने बचा लिया है | जब तुम भजन सिमरन कर रहे थे डाकू तुम्हारी तिजोरी नहीं तोड़ सके| तो जो थोड़ा बहुत बाहर सामान पढ़ा था, वही ले गए और तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं हुआ | इतना सुनते ही वो बाबा जी के पैरों मैं गिर पड़ा और माफ़ी मांगी |

शिक्षा : साध सांगत जी यह है भजन सिमरन की ताकत और बाबा जी सदा हमारे अंग संग रहते है, एक हम ही है जो हमेशा डोल जाते हैं और अपने गुरु पे भरोसा नहीं करते

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