एक बार एक अंधा व्यक्ति जो की प्रमात्मा का भक्त था, डेरे आया ।
उसने एक सेवादार वीर से कहा कि वीर जी मैं आपके महाराज जी से बात करना चाहता हूँ, आप बता सकते है कि मैं उनसे कैसे मिल सकता हूँ तो उस सेवादार वीर ने कहा कि कुल मालिक इस वक्त सत्संग फरमा रहे है सो मैं आप को पंडाल मे छोड आता हूँ । संगत भी ज्यादा है, मुलाकात नहीं हो सकती और उस सेवादार वीर ने उस अधें व्यक्ति को पंडाल में सबसे पीछे एक साईड पर बीठा दिया।
उसने बडे प्यार से सत्संग सुना, पहले ही सत्संग ने उसके अंदर एसी हलचल पैदा कर दी कि वो नाम दान के बारे में सोचने लगा। उसी वक्त वो सेवादार वीर उसके पास आया और पूछने लगा कि आपको सत्संग कैसा लगा तो उस व्यक्ति ने फिर कहा कि मुझे अपने मुर्शद से जरुर मिलवाओ।
उस सेवादार वीर ने कहा वीर तु कल दा सतसगं फिर सुन और रात को मेरे पास ही रहना।
दूसरे दिन भी उस सेवादार वीर ने उसे सत्संग पडांल मे बिठा दिया। दुसरे दिन भी महाराज जी ने नाम दान के बारे में ही समझाया उस व्यक्ति की आखों से आंसू बह रहे थे। उसको गुरु के प्रति बहुत बैराग आया और अदंर से फरियाद की मालिक क्या तूँ मेरे भी गुनाह बक्श देगा।
दुसरे दिन सत्संग समाप्ति पर वही सेवादार वीर आया ओर उसको साथ ले गया
उस अधें वयक्ति ने उस सेवादार वीर से फरियाद की कि मुझे भी नाम दान दिलवा दो और क्या मुझे भी नाम दान मिल सकता हैं तो उस सेवादार ने कहा कि हुक्म तो नहीं है की किसी अधें व्यक्ति को नाम दान मिले पर आपकी तड्प देख कर आपको साथ ले चलता हूँ,
उस वक्त नामदान की इतनी सख्ती नहीं थी, लाइन में कहीं पर रुकावट आती तो गुरु के प्रति उसकी तड्प को देख कर उसे आगे भेज देते ओर उसकी तड्प ओर बैराग ने उसके मिलाप के रास्ते की जो भी रुकावट बन रही थी, वो सब दीवारें तोड दी, जब सच्चे पातशाह कुल मालिक जी के सामने पेश किया तो सतगुरु जी ने फरमाया कि तेरी आंखो की जोत नहीं है इसलिए तुम्हें नाम-दान नहीं मिल सकता वो व्यक्ति इतना सुनते ही वैराग में आकर कहता है कि :- अच्छा फिर आप मुझे उस जगह पर भेज दीजीए जहा नाम दान मिल सकता हो उसकी तड्प को देखते हुए जानी जान सतगुरु जी ने उसे नाम दान वाली तरफ बिठा दीया ओर कहा कि इसको सबसे पीछे बिठा दो, इसी तरह ही किया गया ।
जब सब को नाम दान की बक्शिश हो चुकी तो सतगुरु जी खुद चल कर उसके पास आए ओर कहा की भाई खडा हो, जब खडा हुआ तो बोले कि “तक चंगी तरा मेरे वल्ल” (मेरी तरफ गौर से देखो) क्योंकि एह सरुप तेरे काम आवेगा, जब उसने उपर देखा तो उसकी आखों की जोत आ गइ थी तो उसने सच्चे पातशाह जी के दर्शन किए और कुल मालीक जी ने उसको नाम दान की बक्शीश कर दी।
उसका भरोसा पक चुका था कि जो थोडी देर के लिए बाहरी जोत बक्श सकता है वो अंदर की जोत के दर्शन करवा सकता है सो उसने बडे डट कर सतगुरु जी के उपदेश का पालन करते हुए भजन सिमरन किया ओर मालिक की मौज से उसका परदा खुल गया।
उसको अपने पिछले जन्म की सारी कहानी का पता चल गया। कुछ समय बाद वो डेरे आया।महाराज जी सत्सगं फरमा रहे थे वो बीच मे उठ कर कहता है की हजुर अर्ज करनी है, तो महाराज जी ने फरमाया कि बैठ जाओ, कोई बात नहीं
वो व्यक्ति फिर खडा हो गया कि हजुर रहा नहीं जाता आप आज्ञा दिजीए तो महाराज जी ने कहा ”चंगा चला ले जेडी बंदुक चलानी है ”ओ दुनिया वालो तुम गल्तफहमी में मत रहना एह ता पुरा गुरु है ओर पूर्ण प्रमात्मा है, मै आपको अपनी पिछले जन्म की कहानी सुनाता हूँ
मैं पिछले जन्म में गिद्द था ओर डेरे के रास्ते में एक किकर के पेड पर मेरा ठिकाना था, एक बार कुछ सत्संगी डेरे से लाया हुआ लंगर का प्रशाद उसी पेड के नीचे बैठ कर खा रहे थे, उनके हाथ से जो प्रशाद निचे गीर गया उनके जाने के बाद मैने वो गिरा हुआ प्रशाद खा लिया इसलिए मुझे मनुष्य जन्म मिला ओर मैं अधां क्यू हूआ, एक कुत्ते का बच्चा ट्रक की साइड लगने से अधमरी अवस्था में पडा था ओर तड़प रहा था। मैं गिद्द जात मुझे मास के सिवा कोई चीज अच्छी नही लगती थी, में उस पिल्ले के पास गया ओर उसकी आखें निकाल कर खा गया
इसी कारण मुझे प्रशाद खाने से मनुष्य जन्म तो मिल गया पर पिल्ले की आखें खाने के कारण मैं इस जन्म में अधां हूं सो भाईयो मुझे ये सारी सोझी पुरे गुरु द्वारा ही मिली है आप भी इन्हें आम इन्सान समझने की गलती मत करना
राधा स्वामी जी