बाबा जी कहते है कि, जिंदगी एक खुली किताब के समान है, जिसके पन्ने हर दिन पलट रहे है, हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैं जिसमें हम कभी ख़ुशी का आभास करते है, तो कभी गम का..!!
ये जो वक़्त है न कभी किसी के लिए रुका है न कभी रुकता है यह लगातार अपनी धुरी पर चलता रहता है..!!!
हम भी इस जहाँ में एक मुसाफिर की भाँति आये है तो चलिए क्यों ना इस अनमोल जन्म में मालिक के नाम का “भजन सिमरन” कर इस आवागमन के बंधन से मुक्त होकर अपने निज घर वापिस पहुँच जाये।
चार दिन की जिंदगी हैं अपने पास !!!
न जाने पहले कितनी दर्द भरी चौरासी लाख योनियों में गुजार कर आये हैं । आज जो हमें यह मानुष देह मालिक की दात स्वरुप मिली हैं उसको ख़ुशी-ख़ुशी मालिक पर क़ुर्बान कर मालिक की रजा में राजी रहना सीख जाये। बस यही मालिक से हमारी गुज़ारिश है कि वह हमें अपने भाणे में रहना सीखा दे !!
मेहर करो मालिक आपकी मेहर बिना तो कहते है कि एक पत्ता भी नहीं हिल सकता बक्श लवो ! दाता बक्श लवो ! असी भुलनहार हा दाते !आप जी दे ही बच्चे हा !!!आप जी दे ही आसरे हा दाते !!!!
एक मालिक ही है, जो अपने से कभी दूर नहीं होने देते !!
आँसू तो कभी आँखो में, ये भरने नही देते..!!!!
दर्द भी चेहरे पे उभरने नही देते !!
इस तरह रखते है, मेरे सतगुरू जी….. !!
मुझको समेटकर कि मै टूट भी जाऊँ तो मुझे बिखरने नही देते !!
दो रोज तुम मेरे पास रहो सतगुरू जी !!!!
दो रोज मै तुम्हारे पास रहूँ सतगुरू जी…!!!!
चार दिन की जिदंगी है…!!!!
न आप मुझसे दूर रहो…
न मै आप से दूर रहूँ…!!!!!
।। राधा स्वामी जी ।।