गुरु गोबिंद सिंह जी के वक़्त की बात है, उनके दरबार में एक 10-12 साल का बच्चा रोज़ सत्संग सुनने आता था, एक दिन बाबा जी ने उसको बुलाया और पूछा की क्या नाम है तेरा, तो बोलता है कि जोगा(जोगा पंजाबी वर्ड है, इसका हिन्दी में मतलब “लिए” होता है), सतगुरु ने पूछा “भाई किंदे जोगा (भाई किसके लिए)” तो वो बोला की “जी तुहाडे जोगा (जी आपके लिए), सतगुरु मुस्कुरा के चले गये, जोगा दरबार में ही रहकर सेवा करने लगा, कई साल गुज़र गये, एक दिन सतगुरु को एक खत(लेटर) जोगा के घर से आया, उसमे लिखा था की अब जोगा जवान हो गया है और अब उसको ग्रहस्थ जीवन बिताना चाहिए और अपनी ज़िम्मेवारी समझनी चाहिए.
सतगुरु ने जोगा को बुलाया और कहा की भाई अब घर जाओ और जाकर शादी करवाओ और अपनी ज़िम्मेवारी संभलो, भाई जोगा बोला की मेरी शादी तो हो चुकी है, गुरु जी बोले किसके साथ, तो वो बोला की जी आपके साथ, सतगुरु मुस्कुरा दिए और समझाया की ग्रहस्थ जीवन भी ज़रूरी है.
जोगा ने एक शर्त रखी की शादी तब करवाऊंगा अगर आप भी शादी में आओगे. सतगुरू मान गये, जोगा घर गया और शादी का दिन आ गया. और उधर गुरु जी खुद नहीं गये और अपने एक सेवक को एक खत (लेटर) देके भेज दिया और बोला की जब पहला फेरा हो जाए तो ये जोगा को दे देना. सेवक ने ऐसे ही किया, जब जोगा ने उसको पढ़ा तो लिखा था की “जैसे भी और जिस भी हालात में हो आ जाओ”, जोगा चल पड़ा, सब ने समझाया की फेरे पूरे कर लो फिर चले जाना, जोगा नहीं माना और चल पड़ा.
रास्ते में जा रहा था की मन ने अपनी चाल चली, मन में अहंकार आ गया की मैं गुरु का बड़ा हुकम मानने वाला सेवक हूँ, मेरे जैसा कोई नहीं, चले जा रहा था, जब अंधेरा हुआ तो रुक गया… दूर देखता है की एक जगह दिए जल रहे हैं, वहाँ जाकर देखता है की ये तो एक वेश्या का कोठा है.
फिर मन में आता है की शादी तो हुई नहीं चलो यहीं चल आते हैं… जाता है तो वहाँ खड़ा पहरेदार बोलता है की भाई देखने में तो तुम गुरु सिख लगते हो ये तो कंज़रों का घर है, जाओ यहाँ से. जोगा ने 3 बार जाने की कोशिश की पर पहरेदार ने हर बार माना कर दिया. इसी तरह सुबह हो गयी तो चल पड़ा, डेरे पहुँचे और सतगुरु से मिला, सतगुरु ने पूछा की शादी हो गयी? तो बोला की आधी हो गयी और आधी रह गयी . सतगुरु बोले “और बताओ भाई शादी पे कोई कंजरियाँ बुलवाई थी नाचने क लिए” तो जोगा बोला की “जी हमारे यहाँ ऐसे काम नहीं होते जी” सतगुरु मुस्कुराए और बोले की ” वहाँ से वेश्याओं को ही बुला लेना था” जोगा रोने लगा और बोला सतगुरु बक्ष लो जी बक्ष लो.
सतगुरु मुस्कुराए और बोले “भाई बक्ष तो तभी लिया था जब तुमने सारी रात वहाँ का पहरेदार बनवा के ड्यूटी करवाई”
ऐसे ही हैं हमारे सतगुरु और बाबा जी जो हमेशा अपने शिष्यों की संभाल करते हैं और हमें गिरने नहीं देते.
Very nice story and true title. We have heard of so many stories of Sadguru that always fill our hearts with respect and devotion. Want to hear more such stories. Please keep shring such stories.