एक लड़का सत्संग प्रेमी जीव था। वह विदेश गया हुआ था और उन्हीं दिनों उस देश में लड़ाई छिड़ गयी और उसे वहां से निकलना था, पर उस समय जहाज के टिकट आसानी से नहीं मिलते थे। वह एक दिन ध्यान में बैठा था तभी सदगुरु ने उसे दर्शन दिए और बोला की तू चिंता मत कर , टिकट तुझे मिल जाएगा लकिन तू तीसरे जहाज में बैठना , पहले के दो जहाज़ में नहीं । अगले ही दिन उसे जहाज का टिकट मिल गया और पहले ही जहाज में उसका नंबर भी आ गया , लेकिन वह असंजस में था , क्योंकि सद्गुरु ने उसको तीसरे जहाज में बैठने की हिदायत दी थी | लेकिन फिर भी अनमने मन से बैठने जा ही रहा था कि किसी ने पीछे से आवाज़ लगाई और वह रुक गया और उसे मानो ऐसा लगा कि किसी ने उसे रोक दिया हो | जब दूसरी बार जहाज में बैठने जा ही रहा था तब भी फौजी अफसर ने उसे बैठने से मना कर दिया |
अब तीसरे जहाज में वह जैसे ही बैठा , उसके बाद उसे पता चला की पहले के दोनों जहाज डूब गए हैं | अब उसको सदगुरु की बात समझ में आयी की वो क्यों तीसरे जहाज में बैठने को बोल रहे थे | मन ही मन उसने सदगुरु को लाख बार धन्यवाद किया और उस लड़के ने भण्डारे के बडे सत्संग में सारा हाल वर्णन किया , तब सभी उसकी यह घटना सुनकर चकित रह गए और दिल से बाबा जी को नमन किया |
|| साध संगत को प्रेमभरी राधास्वामी ||