एक बार बाबाजी प्लेन से कहीं जा रहे थे और अापने जीन्स और टी-शर्ट पहन रखी थी और दाढ़ी बाँध रखी थी.
एक एयर होस्टेस ने आप को देखा और केबिन में जा कर दूसरी एयर होस्टेस को बताया की शायद वो “बाबाजी है”???
दूसरी एयर होस्टेस ने कहा कि ये नही हो सकता, और दूसरी एयर होस्टेस उनको देख कर वापस आती है और केबिन में आकर पहले वाली एयर होस्टेस को कहती है कि नहीं ये तो बाबा जी नही है, इन्होने तो जीन्स और टी-शर्ट पहनी है, वो तो कुर्ता पायजामा पहनते है
दोनो एयर होस्टेस मान लेती हैं कि वो बाबाजी नही है
जब फ्लाइट लैंड करती है और एयर होस्टेसेस सब को सी ऑफ कर रही होती है और बाबाजी को भी सी ऑफ करती हैं तो बाबाजी उन दोनो की तरफ देख कर कहते है…
“रूहानियत कपड़ों में नही होती”
ये सुन कर दोनो एर होस्टेसेस कुछ कह नही पाई, बाबाजी अपने सत्संगों में ये बात ख़ास तौर पर कहते है कि “रूहानियत कपड़ों में नही होती”, और इसी बात को समझाने के लिए बाबाजी ने एक सत्संग मे ये साखी सुनाई थी, उन्होने बोला की बहुत पहले डेरे मे एक सत्संगी थे, उन्हें भजन में काफी तरक्की मिली हुई थी और सिमरन मे बहुत आगे तक गये हुए थे,
एक दिन हुजूर उनके पास से जा रहे थे, उन्हें हुज़ूर पर इतना प्यार आ गया कि उन्होने हुजूर को झप्फ़ी (Hug किया ) डाल ली और काफ़ी देर तक उनसे लिपटे रहे
हुजूर ने कुछ नही बोला और चले गये
फिर अगले दिन से जब वो सिमरन मे बैठे तो ध्यान नही लगा,
लगातार 15 दिन तक ऐसा ही होता रहा, वो ध्यान मे बैठते पर ध्यान नही लगता
वो हुजूर के पास जाकर बोले, मुझे माफ़ कर दीजिए
हुजूर ने फरमाया चलो कोई बात नही पर आगे से ध्यान रखना
फिर बाबाजी ने कहा – जीनूओने देना है सत समुंदर पार दे देना है ते जीनू नही देना नाल बैठे नू नही देना, जे मेरे कपड़ेया च रूहाणियत हुंदी, मैं ता कदों दे लाह के दे देने सी , बाबाजी ने कहा की बाहरी शरीर ते इक ज़रिया है अंदरूनी दर्शनां वास्ते.. मतलब जिसको उसने देना है, सात समुन्दर पार भी दे देना है और जिसको नहीं देना है, उसको साथ बैठे हुए भी नहीं देना, अगर मेरे कपड़ों में ही रूहानियत होती तो मैं कब का ये कपडे उतार कर सबको दे देता। बहरी शरीर तो एक जरिया है अंदरूनी दर्शनों के लिए
राधा स्वामी जी – वो मालिक जानी जान है, उन्हें सब पता है की कौन क्या सोच रहा है, क्या कर रहा है और एक हम हैं की हमें ज़रा भी डर नहीं है उस मालिक का, हम उलटे सीधे कर्म किये चले जा रहे हैं