एक औरत सिलाई करके अपना पेट का गुजारा करती थी.
बहुत ही मेहनती थी.
भजन सुमिरन को भी अच्छा समय देती थी.
हक हलाल की कमाई ही खाती थी.
कभी किसी से कुछ मांगती नहीं थी.
सुमिरन भजन में जब तक उसको आनंद नहीं मिलता तब तक भजन सुमिरन नहीं छोड़ती थी.
एक बार सिलाई का काम कुछ ज्यादा आने की वजह से रात तक उसकी सिलाई जारी रही.
वो अपने आंगन में ही बैठी थी.
तभी अचानक बिजली चली गई.
लेकिन पास वाले घर में inverter लगा हुआ था उनके ऑगन में लगे बल्ब से उस औरत के यहां रोश्नी आ रही थी.
जैसे तैसे उसकी सिलाई पूरी हो गयी.
जब औरत आधी रात में सुमिरन के लिये बैठी तो उसे सुबह तक अंदर में आनंद नहीं आया.
फिर भी वह बैठी रही.
बहुत देर बाद जब आनंद आया तब उसने अंदर में गुरु से पूछा कि आज इतना समय क्यों लगा?
गुरु जी ने बताया कि “आज तुमने पड़ोस के घर की बिजली का उपयोग किया जो हक का नहीं होता इसलिये तुम्हें आज समय ज्यादा देना पड़ा”
अब हमें विचार करना चाहिये कि जब इतने से छोटे से बल्ब का use करने का भी हिसाब देना पड़ा तो अगर हम ठगी या बेईमानी करेंगे तो हमें कितना हिसाब देना पड़ेगा.!
दीन दयाल भरोसे तेरे,राधा स्वामी जी, शुक्र है दातेया
सभी प्यारे सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी..