एक बार की बात है। बाबा जैमल सिंह जी सत्तसंग कर रहे थे तो एक सत्तसंगन बीबी के दाँत मे बहुत दर्द हुआ!
दर्द ईतना बड़ गया कि वो बीबी हाय हाय करती सीधा जमीन पर लेट गई।
एक सेवादार बाबा जी के पास गया और बाबा जी से कहा बाबा जी एक बीबी दाँत के दर्द से कराहरही है !!
आप कुछ दया करें !
बाबा जी ने कहा भाई आप चिंता न करें स्वामी जी महाराज की तरफ से दया हो रही है !!
सेवादार हाथ जोड़कर अपनी जगह पर वापस बैठ गया !
मगर बीबी दर्द से हाय हाय चिल्लाती रही !
सेवादार फिर अपनी जगह से उठा और बाबा जी से कहा बाबा जी वो बीबी हाय हाय कर रही है आप थोड़ी दया
करें !
बाबा जी ने कहा भाईं पुरी दया हो रही है !!
जो शबद् के बेदी महात्मा होते है उन्हे हमारे कर्म एसे नजर आते है !
जैसे काँच के गिलास मे पानी !!
बाबा जी ने सेवादार को बताया भाई इस बीबी ने पिछले जन्म मे
किसी छोटे बच्चे के गले मे पड़ी सोने की चेन चुराई थी !
चेन ले करके भी इस बीबी का दिल नही भरा
तो इसने उस बच्चे को जान से मार दिया !!
अब इस जन्म मे वो बच्चा इस बीबी के दाँत मे कीड़ा बनकर बैठा है
और इसको दर्द दे रहा है !!
स्वामी जी महाराज ने इस बीबी के कर्मों के भुगतान मे फेरबदल कर दिया है !
इस बीबी को छोटे बच्चे के कत्ल के एवज मे नरक की आग मिलनी थी !
मगर स्वामी जी महाराज थोड़ा सा दाँत का दर्द देकर
इस बीबी का भुगतान करवा रहे है।
हम सब जीव जब भी कोई दुःख तकलीफ आती है
तो हम गुरू पर उंगली खड़ी कर देते है
गुरू को कोसना शुरू कर देते है !
हम यह नही देख पाते है
कि गुरू की रियायत और दया लगातार हो रही है !!!
जिस दिन गुरू अपने शिष्य को शबद् का भेद देता है !!
उसी दिन से हमारे कर्मों का हिसाब त्रिलोकी नाथ से ले लेते है !
और उसे कहते है के इस जीव की जिम्मेदारी हमारी है
हम तुमको इसका हिंसाब पुरा करके देंगे !!
गुरू अपने शिष्य की तरफ आने वाली सूल को सुई कर देता है !!!