साखी हुजुर महाराज चरनसिंह जी के समय की है : एक सज्जन थे जिन्होंने महाराज चरनसिंह जी से नाम दान लिया हुआ था
वह नई दिल्ली में एक निजी कंपनी में ड्राइवर थे, उनका काम था कि वह रोज़ कंपनी की गाड़ी में कनाट प्लेस किसी बैंक में जाते थे और उनके साथ कंपनी का कैशियर भी होता था |
एक दफा जब वह कनाट प्लेस के ‘कॉफी हाउस’ के नजदीक से गुजर रहे थे तो उन्होंने वहां महाराज जी की गाड़ी खड़ी देखी और पास ही महाराज जी का ड्राइवर भी था लेकिन उनको महाराज जी कहीं नज़र नहीं आये फिर वह सोचने लगे की हो न हो महाराज जी भी जरुर आस-पास गए हैं तो उनके मन में दर्शनों की तड़प उठने लगी वो बहुत ही बेचैन हो गए लेकिन समस्या यह थी की वोह उस समय कंपनी की ड्यूटी पर थे
अब मन ही मन सोचने लगे की क्या किया जाये तभी उनके मन में विचार आया की चलो मैं इस कैशियर से झूठ बोल देता हूँ की मुझे उस गाड़ी के मालिक से पांच सौ रूपए लेने है जो की उसने मुझसे पकिस्तान में उधार लिए थे लेकिन फिर मन में सोचता है कि कहीं मेरे झूठ बोलने से मेरा मालिक मुझ से नाराज न हो जाये इसलिए वो मन में महाराज जी से झूठ बोलने के लिए माफी मांगने लगे, अब प्रार्थना करने के बाद उन्होंने उस कैशियर से बिलकुल वैसा ही बोला जैसा मन में सोचा था, कैशियर जो था वो रुपयों के लेन देन में बहुत चुस्त था इसलिए तुंरत मान गया और बोला की तुम जाओ और अपने पैसे ले लो मैं गाड़ी खुद ही ले जाऊंगा |
इतना सुनकर वो सज्जन तुंरत गाडी से उतर गए और महाराज जी की गाडी के पास चले गए महाराज जी का जो ड्राइवर था वो इन सज्जन का जानकार निकला इन्होने उसको पूछा की महाराज जी कहाँ हैं तो ड्राइवर ने कहा की भाई महाराज जी, महारानी साहिबा और महाराज जी के भाई साहेब पुरुषोत्तम सिंह जी इस ‘कॉफी हाउस’ में ‘कॉफी’ पीने के लिए गए हुए हैं | अभी आने वाले ही होंगे, वो दोनों अभी बातें ही कर रहे थे कि महाराज जी बाहर आ गए, उस सज्जन की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वो अपनी भावनाओं को दबा कर धीरे-धीरे रोने लगे और मन में सोचने लगे की मैंने दर्शन तो कर ही लिए हैं अब मैं महाराज जी के बीच में क्यूँ आऊ इसलिए थोडा पीछे को जाने लगे कि तभी महाराज जी ने आवाज दे कर कहा : “भाई तू अपने पांच सौ रूपए तो लेता जा जो मैंने तुझ से पाकिस्तान में लिए थे” इतना सुनते ही वो फूट-फूट कर रोने लगे और जब तक महाराज जी चले नहीं गए तब तक ऐसे ही रोते रहे
हमारे सतगुरु जानी जान हैं, उनसे कुछ नहीं छिपता |
राधा स्वामी जी