बाबाजी समझाते हैं कि – ” शब्द ” हमारा आधार ही नही है , हमें इस बात की खबर ही नही हैं कि सतगुरु हमे जगाते हैं… “जागो प्यारे जागो “, “शब्द” हर पल हमारी हम सब की सम्भाल कर रहा है ! हम “शब्द” की हिफाज़त में हैं ,”शब्द” ही हमे कायम रखता हैं ! “शब्द” ही हमारा प्राण है , “शब्द “ही हमारी हस्ती का कारण है !
बिना “शब्द “के हम ज़िंदा नही रह सकते , हमारा वजूद मिट जाएगा ! असल में हम “शब्द “ही है !!
बाबाजी ने एक सत्संग मे फरमाया कि अगर एक भिखारी को ये पता चल जाये कि मैं राजा का बेटा हूँ तो क्या वह भीख माँगना पसन्द करेगा? वो अपने पिता से अपना हक माँगेगा। उसी तरह हम उस “मालिक” की संतान हैं, रूहानियत हमारा हक़ है। लेकिन पिता अपनी जायदाद अपने ‘लायक’ बेटे को ही देना पसंद करता है, हमें भी अपने पिता का लायक बेटा बनना है। ताक़ि वो फख्र से अपनी दौलत का अधिकारी बना दे। लेकिनइसके लिए भरपूर मेहनत (भजन सिमरन) करना है, “बाबाजी” का ‘लायक’ बेटा बनना है। ये करनी का मार्ग है, जो करेगा वही इस ‘दौलत’ का हकदार होगा।
सतगुरु तो सच्चे दिल से हमें अपनाते हैं। हमें नामदान की बख्शिश भी करते हैं। लेकिन हम ऐसे निक्कमे और आलसी हैं कि गुरु के प्रेम का महत्त्व ही नहीं समझते। हमारे पास सिमरन और भजन का समय ही नहीं होता। हर समय दुनियादारी में खोये रहते हैं और झूठे रिश्तों को निभाने में ही अपना पूरा जीवन व्यर्थ कर देते हैं।
शायद इसीलिए संत पलटू साहिब जी ने हम जैसे लोगों के लिए कहा है कि:
पलटू पारस क्या करे, जो लोहा खोटा होय।
सतगुरु सब को देत हैं, पर लेता नाहिँ कोय….
बाबा जी की दया से आज 1 घंटे से ज्यादा भजन सिमरन में बैठा, आप भी कोशिश कीजिये – सफलता जरूर मिलेगी
राधा स्वामी जी