बाबाजी जब छोटे थे तो लँगर खाने के बाद, प्रसाद का कुछ हिसा बचाकर अपनी जेब मे रख लेते थे किसी सेवदार ने कई बार येह देखा और एक बार महाराज जी को जाकर बताया के गोगी ( बाबाजी को बचपन का नाम ) के वो रोज़ लंगर का प्रसाद बचाकर कैंटीन के पास जो पेड है वहाँ बैठ कर कीड़ों मकोडों को छोटे छोटे टुकड़े कर के डालते हैं. तब महाराज जी ने हँसते हुए कहा के वो प्रसाद waste नही कर रहे है बल्कि अपनी संगत तैयार कर रहे है.इसीलिये भाइयो और बहिनो हम वो कीडे मकोड़े ही थे जिन को हमारे प्यारे बाबाजी ने इतनी बख्शीश की और इंसान का जामा दिया है.
|| राधास्वामी जी ||
Radha soami ji