भजन बिन बावरे तू हीरा जनम गंवई
भजन का शाब्दिक अर्थ होता है भागना। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कहीं-कहीं बोल चाल की भाषा में भागने को भजना कहते हैं। सच्चा भजन क्या होता है, ये सन्त महात्मा बताते हैं। दुनियां के लोग भजन करते हैं नाच-गाकर। वो इसी को भजन समझते हैं। लेकिन महापुरुष बताते हैं कि भजन वो है जिसमें ये जीवात्मा अन्तर में आकाशवाणी, अनहद वाणी, वेदवाणी, कलमा, और आयतें सुनती है, सुनते-सुनते उसमें लय होती हैं और लय होते-होते इस शरीर से अलग होकर निकल भागती है। ये है सच्चा भजन।
अब दुनियां के लोग जो यह नहीं जानते कि महात्मा किसे कहते हैं, सन्त किसे कहते हैं , गुरु क्या शक्ति होती है , वो लोग गा बजाकर घूम नाचकर भजन करते हैं, पूजा अर्चना करते हैं और समझते हैं कि हमें मुक्ति मोक्ष मिल जाएगा स्वर्ग बैकुण्ठ मिल जाएगा। वो अनजान हैं। अनजाने में भी अगर सच्चे हृदय से वो पूजा आराधना करते हैं तो उनको कर्म-फल मिलेगा। अनजाने में वो किसी को भी गुरु बना लेते हैं पर अगर उनकी सच्ची श्रद्धा है तो उनको उसका फल मिलेगा। उनकी यही सच्ची श्रद्धा विश्वास सच्चे महात्मा के पास पहुंचा देगी और उनके बताये मार्ग पर चलेंगे और साधन-भजन करेंगे।
हम महापुरुष से जुड़ चुके हैं, उन्होंने सच्चा मार्ग भी बताया, भजन का तरीका भी बताया फिर भी हम भजन नहीं कर पाते। हम जैसों के लिए ही गोस्वामी जी ने कहा:
जो न तरे भवसागर, नर समाज अस पाय।
कालहिं कर्महिं ईश्वरहीं, मिथ्या दोष लगाय।।
हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम रास्ता पाकर भी भजन नहीं कर पाते। कहने को हम कहते हैं कि हमें कुछ दिखाई सुनाई नहीं देता, गुरु महाराज की दया नहीं हो रही है वगैरह-वगैरह। लेकिन सच तो ये है कि हम सत्संग वचनों को याद नहीं रखते, जिस तरह से गुरु महाराज ने बताया उस तरह से साधना में एकाग्र नहीं हो पाते। इसका कारण ये है कि हम साधन भजन की खाना पूरी करते हैं। शरीर बैठ जाता है मन कहीं भागता है, चित्त कुछ चिन्तन करता रहता है और बुद्धि, उहापोह में रहती है।
स्वामी जी महाराज के शब्दों में दिन भर तुम दुनियां के कंकड़ पत्थर इकट्ठे करते रहते हो, ध्यान भजन में वहीं घनघनाते हैं जैसे बैठे वैसे ही उठ गए और मन ने सोच लिया कि हमने ध्यान कर लिया भजन कर लिया।
स्वामी जी महाराज ने ये भी कहा कि दफ्तर में रहो, दुकान में रहो या खेत में रहो दो मिनट, चार निमट समय निकाल कर आंख बन्द कर लो, नाम रूप को याद करो, कभी ध्यान की स्थिति में बैठो और मौका मिल जाय तो भजन में बैठो। इससे तुम्हारा ध्यान उधर लगा रहेगा और दुनिया के आवरण कम चढ़ेंगे और जब ध्यान भजन में बैठोगे तो तुम्हारा मन रुकेगा चित्त रुकेगा, बुद्धि स्थिर होगी। ये काम कोई कठिन नहीं बताया
स्वामी जी महाराज ने। हम जो फालतू समय गंवाते हैं उसमें ये काम कर सकते हैं। लेकिन हम ये भी नहीं करते ओर रोते रहते हंै कि हमारा मन नहीं लगता और जो घण्टा दो घण्टा हम समय देते हैं साधना में वह चाहे जैसे भी बैठे हों लेकिन जरा सी परेशानी आई तो हम उसकी कीमत चाहते हैं और कह देते हैं कि गुरु महाराज हमने आप से नामदान लिया है, हम साधना करते हैं, हम कार्यक्रम में बराबर आते हैं, मन्दिर के दर्शन करते हैं, यथाशक्ति सेवा देते हैं, हमें ऐसी परेशानी है, दया कीजिए।
सच पूछा जाय तो दया की कोई कीमत नहीं होती। दया तो गुरु की दात है। वो अपनी मौज से देते हैं हम उसकी कीमत क्या चुका सकते है
इसीलिए कहा है ऊँचा
‘बदला कहांगुरु को दीजे’ और गुरु का बदला दिया न जाई, मन में उपजत है सकुचाई।
महात्माओं ने यह भी कहा
भजन बिन बावरे
तू हीरा जनम गंवई