आज का रूहानी विचार
हम सबके जीवन में कई बार परेशानियां आती हैं, और एक वक़्त ऐसा आता है जब हमें लगता है या हमारे मन में ख्याल आने लगता है कि बाबा जी मैं ही क्यों ? या मेरा ही परिवार क्यों, ऐसा सिर्फ मेरे या मेरे अपनों के साथ ही क्यों होता है? अपने सुना होगा की बहुत बार ये प्रश्न बाबा जी से पूछा भी गया है, कई बार तो बच्चों के सवाल जवाब में भी पूछा गया है |
बाबा जी कहते हैं कि मैं ये बात सीधे और साफ़ शब्दों में समझा देता हूँ कि जिस तरह एक पिता अपने सभी बच्चों को एक ही नज़र से देखता है, ठीक उसी तरह सभी सत्संगियों के लिए मेरा प्रेम और प्यार एक सा ही है | दूसरी बात यह कि सत्संगी होकर भी हम जो पाप और बुरे कर्म किये जा रहे हैं, संतमत के अनुसार गुरु किसी भी जीव के कर्मों, पापों और अवगुणों को वैसे ही देखता है जैसे कि एक धोभी एक कपडे की मैल को देखता है, उसकी नज़र उस कपडे पर होती है और उसका काम है कपडे को किसी भी तरह साफ़ करना – कहाँ साबुन लगना है, कहाँ सर्फ़, कहाँ रगड़ना है या कहाँ किसी कपडे को पत्थर पर पीट कर साफ़ करना है, ये तो मैल पर निर्भर करता है, इतना ही नहीं कभी कभी तो उन कर्मों का बोझ गुरु को भी अपने ऊपर लेना पड़ता है
हमें चाहिए कि जो बुरे कर्म अब तक कर दिए हैं, उनके लिए माफ़ी मांगें और आगे बुरे कर्म और पाप से बचें |
राधा स्वामी जी