Ek hi parmatma – Fakir Sarmad

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एक मुसलमान फकीर हुआ, सरमद। सरमद के जीवन में एक बड़ी मीठी घटना है। सरमद पर, जैसा कि सदा होता है, उस जमाने के मौलवियों ने एक मुकदमा चलवाया। पंडित सदा से ही संत के विरोध में रहा है। सरमद पर एक मुकदमा चलवाया, सम्राट के दरवाजे पर सरमद को बुलवाया गया। मुसलमानों में एक सूत्र है। वह सूत्र यह है कि एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं उसके सिवाय, और एक ही पैगंबर है उसका, मुहम्मद। लेकिन सूफी फकीर इसमें से आधा हिस्सा छोड़ देते हैं। वे पहला हिस्सा तो कहते हैं कि एक परमात्मा के सिवाय और कोई परमात्मा नहीं है। दूसरा हिस्सा कि उसका एक ही पैगंबर है मुहम्मद, यह वे छोड़ देते हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि उसके बहुत पैगंबर हैं। इसलिए सूफियों के खिलाफ सदा से ही मुस्लिम थियोलाजी जो है वह सदा से सूफियों के खिलाफ रही है। सरमद तो और भी खतरनाक था। वह सूफियों के इस पूरे सूत्र को भी पूरा नहीं कहता था। इसमें से भी आधा उसने छोड़ दिया था। सूत्र है कि एक ही परमात्मा के सिवाय कोई परमात्मा नहीं। वह सिर्फ इतना ही कहता था, कोई परमात्मा नहीं— आखिरी हिस्से को।

अब यह तो हद हो गई। मुहम्मद को छोड़ दो चलेगा। तब तक भी आदमी नास्तिक नहीं हो जाता। सिर्फ इतना ही है कि मुसलमान नहीं रह जाता। और मुसलमान न रह जाने से कोई धार्मिक नहीं रह जाता, ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन इस सरमद के साथ क्या करोगे? यह कहता है, कोई परमात्मा नहीं।

तो सरमद को दरबार में ले जाया गया। और सम्राट ने पूछा, सरमद, क्या तुम ऐसी बात कहते हो कि कोई परमात्मा नहीं? सरमद ने कहा, कहता हूं। और उसने जोर से दरबार में कहा, कोई परमात्मा नहीं। सम्राट ने कहा, तुम नास्तिक हो क्या? उसने कहा, नहीं, मैं नास्तिक नहीं हूं। लेकिन अभी तक मुझे किसी परमात्मा का कोई पता नहीं चला, तो मैं कैसे कहूं। जितना मुझे पता चला है, उतना ही कहता हूं। इस सूत्र में मुझे आधे का ही पता है अभी कि कोई परमात्मा नहीं। आधे का मुझे कोई पता नहीं। जिस दिन पता हो जाएगा, उस दिन कह दूंगा। और जब तक पता नहीं है, तब तक झूठ कैसे बोलूं! और धार्मिक आदमी झूठ तो नहीं बोल सकता। बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। आखिर उसको फांसी की सजा दी गई। और दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने उसकी गरदन काटी गई।

यह कहानी नहीं है। हजारों —लाखों लोगों ने उस भीड़ में उसकी फांसी को देखा। उसकी गरदन काटी गई मस्जिद के दरवाजे पर और मस्जिद की सीढ़ियों से उसकी गरदन नीचे गिरी और उसके कटे हुए सिर से आवाज निकली, एक ही परमात्मा है, उसके सिवाय कोई परमात्मा नहीं।

तो जो लाखों लोग भीड़ में उसके प्यार करने वाले खड़े थे, उन्होंने कहा, पागल सरमद, अगर इतनी ही बात पहले कह दी होती! पर सरमद ने कहा, जब तक गरदन न कटे, तब तक उसका पता कैसे चले। जब पता चला, तब मैं कहता हूं कि परमात्मा है, उसके सिवाय कोई परमात्मा नहीं। लेकिन जब तक मुझे पता नहीं था, तब तक मैं कैसे कह सकता था।

कुछ सत्य हैं जो हमें गुजर कर ही पता चलते हैं। मृत्यु का सत्य तो हमें मृत्यु से गुजर कर ही पता चलेगा। लेकिन उसका पता चल सके, इसकी तैयारी हमें जिंदगी में ही करनी पड़ेगी। मरने की तैयारी भी जिंदगी में करनी पड़ती है। और जो आदमी जिंदगी में मरने की तैयारी नहीं कर पाता, वह बड़े गलत ढंग से मरता है। और गलत ढंग से जीना तो माफ किया जा सकता है, गलत ढंग से मरना कभी माफ नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह चरम बिंदु है, वह अल्टीमेट है, वह आखिरी है, वह जिंदगी का सार है, निष्कर्ष है। अगर जिंदगी में छोटी —मोटी भूलें यहां —वहा की हों तो चल सकता है, लेकिन आखिरी क्षण में तो भूल सदा के लिए थिर और स्थायी हो जाएगी।

राधा सवामी जी

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