सेवा का प्रताप – Beas Sakhi

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एक बार की बात है एक सत्संग प्रेमी थे हरभजन, जिनकी किराने की दुकान थी। लेकिन सतगुरू की सँगत की सेवा में ही उनका काफी समय लग जाता था उनकी दुकान दिन में केवल दो-चार घण्टे ही खुलती थी और कभी कभी बिल्कुल बन्द ही रहती थी | 

ऐसा कई सालों से चलता आ रहा था, लेकिन कभी भी उन्हें अपने खर्चे पानी की कमी नहीं हुई | यह सब आस पास के दुकानदार भी जानते थे और हैरान होते थे  कि वो लोग पूरा दिन दुकान पे बैठते हैं , और हरभजन सिर्फ कुछ घंटो में ही अपने जीवन यापन के लिए प्रयाप्त धन अर्जित कर लेता है | 

एक दिन आपकी दुकान के आस पास वाले दुकानदार इकट्ठे होकर पास हरभजन के पास आए और कहने लगे, “हरभजन जी, एक बात हमें बताईये कि क्या आप ग्राहकों को टाईम देकर आते हो? आप जिस समय दुकान खोलते हो, उसी वक्त ग्राहकों की भीड़ लग जाती है और हम सुबह से ही धूप बत्ती जलाकर ग्राहकों की इंतज़ार में बैठते है। 

निगाहें सड़क की ओर रहती है कि कौन सा ग्राहक आएगा और कुछ लेकर जायेगा। परंतु और आप दो घण्टे में ही दिन-भर की कमाई करके निश्चिंत हो जाते हो” इसमे क्या राज़ है भाई जी?*

हरभजन सिंह जी ने बड़ी नम्रता से जवाब दिया “भाई साहब जी, मैं ग्राहकों को बता कर नहीं आता, बस मेरा सतगुरु मेरे को मेरी सेवा की लिए पूरा समय देता है | 

उनसे अपने गुरू के प्रेम और सेवा की महिमा सुनकर सभी की आँखें भर आई, उस दिन के बाद कई दुकानदारों ने सत्सँग और सेवा में जाना भी शुरू कर दिया | 

|| साध संगत को प्रेमभरी राधास्वामी ||

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