बहुत पहले की बात है ,एक बार एक बहुत धनी सेवादार थे | वह सेवा करना चाहते थे, पर उन्हें कोई सेवा देने को तैयार ही नहीं होता था, क्योंकि वह बहुत धनवान व्यक्ति थे | एक बार उन्हें महाराज जी से मिलने का सौभाग्य मिला और उन्होंने अपनी यह इच्छा उन्हें सुनाई और तब महाराज जी ने उन्हें कुएँ में से पानी निकाल कर प्याऊ लगाने की सेवा दी | वह बहुत खुश हुए |
वह हमेशा सफ़ेद कुरता पायजामा ही पहनते थे | अब जब उन्होंने सेवा शुरू की तब उन्हें कुएँ में से पानी निकाल कर मिट्टी में चलना पड़ता था तो उनके कपड़ों पर कीचड़ व मिट्टी के दाग लग जाते थे| कुछ दिन तो उन्होंने अच्छे से सेवा की पर बाद में उन्होंने इस सेवा को करने के लिए एक लड़के को रख लिया, अब सेवा तो होती थी पर उस लड़के के द्वारा | वो धनि व्यक्ति उस लड़के को कुछ रुपए दे देता थे और वो ख़ुशी ख़ुशी सेवा कर देता था |
कुछ समय बाद उस अमीर सेवादार की तबियत ख़राब हो गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया, हालत इतनी बिगड़ गई कि बिस्तर पर लेटे हुए उसे उल्टी लग जाती, कभी शौच कपड़ों में ही निकल जाता और उसके सारे कपड़े बुरी तरह ख़राब हो जाते थे|
एक दिन महाराज जी को उस धनी व्यक्ति का पता लेने का मन हुआ तो वह उसे देखने पहुंचे तो वह फूट फूट का रोने लगा और महाराज जी से बोला कि महाराज जी देखो मेरी इतनी सेवा के बाद भी मेरा क्या हाल हुआ है | मेरे पे तो दया मेहर हुई ही नहीं |
श्री हुज़ूर महाराज जी ने फरमाया कि दया तो हुई थी लेकिन तुमने अपने हिस्से की दया एक मज़दूर को दे दी |
हुज़ूर ने प्यार से पूछा कि प्याऊ की सेवा करते हुए कपड़ों पर थोड़ी सी मिट्टी लगना ठीक था कि जो अब हो रहा है वो ठीक है, फिर उसे समझाया अगर तुम कुएँ से पानी लाने की सेवा में अपने सफेद कपड़े थोडे से मैले कर लेते तो तुम आज यहाँ अस्पताल में ना होते | उस सेवा के जरिये महाराज जी उसके कर्म काटना चाहते थे , पर हुआ कुछ और, इसलिए अपनी सेवा स्वयं करें और पूरी शिद्दत से करें |
|| साध संगत को प्रेम भरी राधा स्वामी ||