एक बार की बात है कोई
मालिक का प्यारा जो आंखों से अंधा था ! चला गर्म रेत के रास्ते नंगे पांव अपने सतगुरू से मिलने !
संत तो घट घट की जानते हैं उन्होने देखा की कोई मेरा प्यारा आंखो से लाचार गर्म रेत पर चल कर लंबा रास्ता तय करके मेरे पास मुझे मिलने को आ रहा है !
संत कहां अपने प्यारे का दुख देख सकते हैं ! अपने बाकी शिश्यों से बोले के मैं अपने किसी प्यारे से मिलने जा रहा हूं !
जब सतगुरू अपने उस आंखों से लाचार प्यारे से मिलने पहुंचे, मिल कर बोले तेरे प्यार के सदके !!!!
प्यारे मांग क्या चाहिये,
दास बोला जी कुछ नहीं !
सतगुरू बोले तेरा दिल बहुत बडा है अब दो चीजें मांग….तब वो दास बोला सच्चे पातशाह मेरी आंखे लौटा दो तांकी मैं आप के दर्शन कर सकूं !
मालिक ने मेहर की, दास को दिखाई देने लगा
(क्योंकि कहते हैं ना के करता करे ना कर सके गुरू करे सो होये) दास ने जी भर दर्शन किये तब सतगुरु ने कहा अब दूसरी मांग मांगो तो दास रो पडा, बोला सचेपातशाह मेरी ये आंखें वापिस ले लो !
सतगुरू बोले प्यारे ये तुम क्या मांग रहे हो तब दास बोला सचे पातशाह मैं आप को देख कर कुछ और नहीं देखना चाहता।
सतगुरू जी ने दास को गले लगा लिया..
(फिर तो गुरु राजी तो रब राजी)