बाबा सावन सिंह जी एक बार पहाड़ी इलाके में सत्संग करने के लिए गए, वहां पर लोग जात पात को बहुत मानते हैं वहां पर सत्संग घर बन रहा था और रोज सेवा होती थी, रोज लंगर बनता था |
वहां पर बाबा जी ने 2 घंटे सत्संग फ़रमाया और सत्संग करने के बाद बाबा जी ने संगत को बोला कि अगर किसी को कुछ पूछना है तो पूछ सकता है, संगत में आदमी रोते हुए उठा और बोला की बाबा जी मैं छोटी जात का हूँ जिस वजह से मुझ से यहाँ पर कोई अच्छे से बात नहीं करता और ना ही कोई सेवा करने का मौका देता है , मैंने सोचा था के मालिक के घर सब बराबर है लकिन ऐसा नहीं है, मैं आपसे पूछना चाहता हूँ की यहाँ पर ऐसा भेदभाव क्यों किया जाता है |
बाबा जी ने बड़े सख्त शब्दों में कहा कोई नहीं जब तक मालिक बड़ी जात वालों को छोटी जात में जन्म नहीं देता, ये बड़ी जात वाले नहीं सुधरेंगे
बाबा जी के गुस्से वाले यह अल्फ़ाज़ सुन कर सबने बाबा जी के आगे हाथ जोड़ लिए और माफ़ी मांगी |
बाबा जी ने फरमाया कि अगर हम किसी इंसान को नीचा समझते हैं या उसको नफरत करते है तो याद रखो कि हम उस मालिक को ही नफरत कर रहे हैं, हर एक जीव के अन्दर वो मालिक बैठा है | मालिक ने तो इंसान को बनाया था, इंसान ने जात पात को बना दिया, इंसान ने तो उस मालिक को भी बाँट दिया है, अलग अलग धर्म बना दिए, उस दिन बाबा जी ने सबको बड़े ही अच्छे वचन से समझाया – अमलां उत्ते होण नबेड़े, खड़ी रहन गियां जातां, जिसका मतलब है – इंसान अपना सफर पूरा करके जब उस मालिक के पास वापिस जाता है तो वो कुल मालिक उससे यह नहीं पूछता कि तुम कौन सी जाति के हो, वो तो उसके कर्मों का हिसाब किताब खोलता है और उसको उसके कर्मों के हिसाब से ही फल देता है
इसलिए हमें भी यह चाहिए की मालिक की रज़ा में रहे और किसी को भी छोटा न समझें , जो भी यह सोचता है के मैं बड़ी जात का हूँ केवल मुझे ही भक्ति करने का अधिकार है वो सबसे बड़ा मूर्ख है
राधा स्वामी जी