गुरुनानक जी और भाई बुड्ढा

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एक लड़का था जो कि रोज़ गुरू नानक जी के पास उनकी कथा सुनने के लिए बैठ जाता था| एक दिन गुरु नानक जी ने उससे पूछा, “बेटा | ठण्ड  के महीने में सुबह इतनी जल्दी क्यों आ जाता है ?”

वह लड़का बोला, “गुरूजी  | क्या पता कब मौत आकर ले जाये ?”

गुरु नानक जी बोले, “तेरी उम्र तो अभी बहुत  कम है  | अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी ?अभी तो तू जवान होगा, बूढ़ा होगा, फिर मौत आयेगी।”

लड़का बोला, “गुरु जी  | मेरी माँ रोज चूल्हा जलाती हैं, और मैं अक्सर देखता हूँ कि  बड़ी-बड़ी लकड़ियों को आग पकड़ने  में देर लगाती हैं और छोटी लकड़ियां जल्दी आग पकड़ लेती हैं |  माँ ने छोटी-छोटी लकड़ियाँ डालीं तो उन्हें आग ने जल्दी पकड़ लिया। इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़ ले। इसीलिए  मैं अभी से कथा में आ जाता हूँ।”

नानकजी बोल उठे, “है, तो तू बच्चा, लेकिन बात बड़े-बुजुर्गों की तरह करता है। अतः आज से तेरा नाम ‘भाई बुड्ढा’ रखते हैं।उन्हीं भाई बुड्ढा को गुरू नानक जी के बाद उनकी गद्दी पर बैठने वाले पाँच गुरूओं को तिलक करने का सौभाग्य मिला। 

हमें भी चाहिए कि हम अपने बच्चों को इस तरह से शिक्षा दें कि उनका मन सत्संग और सेवा में लगे, और उसके लिए हमें खुद ये करके दिखाना होगा ताकि बच्चे हमसे सीखें | 

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|| साध संगत को प्रेमभरी राधास्वामी ||

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