सत्संग बाबा जी – स्थान नई दिल्ली
बाबा जी ने 1.5 hrs का सत्संग फ़रमाया
शब्द : श्री गुरु अर्जन देव जी का श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में से
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4. धर्म स्थानों पर माथे टेकने से, लेटने से या दिखावा करने से कोई मालिक का असली भक्त नहीं हो जाता, यह तो दिखावा है, हम लोगों को तो धोखा दे सकते हैं, अपने आप को भी धोखा देने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन मालिक को धोखा बिलकुल भी नहीं दे सकते, वह तो हमारे रग रग की पहचान रखता है, उससे कुछ भी छुपा नहीं है. मालिक का असली भक्त वह है जो अपने दिल से मालिक की भक्ति करे
5. हमें जब अपने बच्चों की शादियां करनी होती हैं तब देखते हैं की सामने वाले की जात पात क्या है, धर्म क्या है ?, सब जीव मालिक के बनाए हुए हैं, धर्म और जात तो इंसान ने बनाए हैं , उस मालिक ने तो केवल एक इंसान को बनाया है, तो हम फिर धर्म या जाति को लेकर भेद भाव करने वाले कौन होते हैं? हाँ हमें ये जरूर परखना चाहिए की परिवार कैसा है, लड़का / लड़की काबिल है या नहीं (पैसा, जमीन, जायदाद तो आनी जानी चीज़ें हैं, आज हैं तो कल नहीं और अगर आपके बच्चे की तक़दीर में इन सब का सुख लिखा है तो अगर आज उस घर में ये सब कुछ नहीं भी है तो आ जायेगा और अगर तक़दीर में ही नहीं है तो आप चाहे कितना ही बड़ा खानदान क्यों न देख लो, फिर भी चला जायेगा या आपके बच्चे को उसका सुख नहीं मिलेगा, ये सब तो कर्मों का फल है) कम से कम हमें सत्संगी होकर तो ये सब समझना चाहिए
6. अच्छे कर्म करने से आपको अगला जन्म अच्छा मिल जायेगा, आप अमीर घर में पैदा हो जायेंगे या किसी देवी देवता की योनि में चले जायेंगे पर इस संसार से मुक्ति नहीं मिलेगी । लोहे की जंजीरें उतरेंगी तो सोने की लग जाएँगी पर रहोगे तो इस 84 लाख के जेल खाने के कैदी ही , मुक्ति तो आपको तभी मिलेगी जब किसी पूर्ण संत महात्मा की शरण में जाओगे, नामदान की बख्शीश मिलेगी, नाम की कमाई करोगे, सुमिरन करोगे तब जाकर इस 84 से छुटकारा मिलेगा
7. संत महात्मा अपनी भक्ति करवाने के लिए नहीं आते, वो तो उस मालिक के भेजे हुए messenger होते हैं जो हमें उस मालिक की याद दिलाते हैं, और हमें उस मालिक की भक्ति का असली साधन समझाते हैं, हमें उस मालिक से जोड़ने के लिए आते हैं, हमें वापिस अपने असली घर सचखण्ड ले जाने के लिए आते हैं, मालिक खुद तो अपनी भक्ति का साधन समझाने नहीं सकता , इसलिए वो अपने messengers भेज देता है, जो हमारे बीच रहकर उसकी असली भक्ति करने का तरीका समझाते हैं और उस से मिलवाते हैं, हमें उनकी बात पर अमल करना चाहिए लेकिन हम तो उनकी ही पूजा में लग जाते हैं, उनके पीछे भागने लगते हैं, उनके पाँव छुने की कोशिश करने लगते हैं, उनसे कहते हैं की सर पर हाथ रख दो, आशीर्वाद दे दो, जिसे मालिक ने आशीर्वाद देना है उसे सात समुन्दर पार बैठे भी दे देना है और जिसे नहीं देना उसे पास होने पर भी नहीं देना
8. शरीर तो सेवक का भी यहीं रह जाना है और संत महात्मा का भी, असली गुरु तो शब्द है और असली सेवक सुरत है, शब्द ने ही सुरत को खींचकर सचखण्ड ले जाना है, शरीर ने नहीं जाना, शब्द मिलावा होत है देह मिलावा नाहीं
9. कहने को हम कह देते हैं कि मालिक हर जगह है, लेकिन मानता कोई नहीं है, हुज़ूर महाराज फ़रमाया करते थे कि अगर हमारे सामने एक छोटा बच्चा बैठा हो तो हम उसके डर से गलत काम नहीं करते लेकिन अकेले में गलत काम करने से नहीं चूकते, हमारे मन में तो मालिक का छोटे बच्चे जितना भी डर नहीं है
॥ राधा स्वामी जी ॥